जैव उर्वरकों का फसल उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका (Biofertilizers play an important role in crop production)





Dr. Madhulika Singh and  Dr. Virendra Kumar Painkra

बहुत ही ज्यादा ध्यान देने योग्य बात  है कि वर्तमान समय में फसल उत्पादन को लगातार बढ़ाना कृषि वैज्ञानिकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। सघन खेती से मृदा में पोषक तत्व धीर धीरे कम होते जा रहे हैं इस कमी को रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से पूरा किया जाता है । परन्तु रासायनिक उर्वरकों की कीमतें आसमान छूने लगी है जो कि आम किसानों के लिए प्रबंध करना चुनौतीपूर्ण है। प्राथमिक एवं मुख्य पोषक तत्व जैसे नत्रजन, स्फूर एवं पोटास का उपयोग पौधों द्वारा किया जाता है जिसमें नत्रजन का सर्वाधिक अवषोषण होता है। नत्रजन की इस बड़ी मात्रा की आपूर्ति केवल रासायनिक उर्वकों से कर पाना छोटे एवं मध्यम श्रेणी के किसानों की क्षमता से परे है। आर्थिक दृष्टि से नत्रजन का वैकल्पिक स्त्रोत जैव उर्वरक मृदा की उर्वरा शक्ति को टिकाउ रखने के लिए आवश्यक  है।

जैव उर्वरक

जैव उर्वरक सूक्ष्म जीवों की जीवित कोशिकाओ  को किसी मिश्रित करके बनाये जाते हैं तथा जिन्हे  मृदा या बीज के साथ मिला देने पर पौधों के लिये वायु मण्डलीय नत्रजन को भूमि में स्थिर करते हैं अथवा अघुलनशील  स्फूर उर्वरक पदार्थो को घुलनशील  स्फूर में  परिवर्तित करते हैं। भूमि में पड़े पादप अवशेषो  की सड़न क्रिया बढ़ाते हैं जिसमें भूमि की उर्वरा शक्ति एवं फसल उत्पादन क्षमता बढ़ती है, जिससे उर्वरा शक्ति एवं फसल उत्पादन क्षमता बढ़ती है।

जैव उर्वरकों की उपयोगिता 

1. जैव उर्वरक प्रदुषण मुक्त होते हैं।

2. ये अन्य उर्वरकों की तुलना  में कम से कम कीमत पर पोषण तत्व प्रदान करते हैं।

3. ये वायु मंडलीय नत्रजन को स्थिरीकरण करके पौधे को उपलब्ध करने की क्षमता रखते हैं।

4. भूमि की संरचना एवं रचना को अच्छा बनाते है।

5. जैव उर्वरक भूमि से पैदा होने वाली बीमारियों को कम अथवा नियंत्रित करते हैं।

6. इनका प्रभाव चिरकाल तक रहता है और इससे पौधे स्वरुप, निरोगी और मजबूत बनते है।

7. इनके प्रयोग से औसतन 10-12 प्रतिशत फसल की उत्पादन में वृध्दि होती हैं।

8. इनसे पौधे की वृध्दि हेतु हारमोन्स, विटामिन्स आदि भी प्राप्त होते हैं।

9. जैविक उर्वरक - रासायनिक उर्वरक के प्रयोग के अनुपुरक है।

10. शुष्क भूमियों में जैविक उर्वरक अन्य उर्वरकों की तुलना में  सबसे अधिक लाभकारी सिध्द हुए हैं।


जैव उर्वरक तथा उनके द्वारा पौधों को उपलब्ध पोषक तत्वों की मात्रा


जैव उर्वरक

फसल पोषक तत्व

(कि.ग्रा./हे.)

राइजोबियम 

दलहनी फसलें

 30-180 नत्रजन

एजेटोबैक्टर 

अदलहनी फसलें

20-35 नत्रजन

एजोस्पाइरिलियम 

अदलहनी फसलें        

20-35 नत्रजन

एजेटोबैक्टर 

गन्ना

70-150 नत्रजन

नील हरित काई 

धान 

 25-30 नत्रजन

पी.एस.बी. कल्चर 

सभी फसलें

10-25 स्फुर

वैम (माइकोराइजा)

सभी फसलें

10-25 स्फुर


जैव उर्वरक रासायनिक उर्वरक की तुलना में बहुत सस्ता होता है तथा जैव उर्वरक की उपयोगिता उत्पादकता बढ़ानें के लिये इस प्रकार है-

फसल 

 उत्पादकता में औसत वृध्दि (प्रतिशत में

जैव उर्वरक की मात्रा 

रासायनिक उर्वरक की मात्रा

धान   

15 प्रतिशत 

 एक मी. टन राइजोबियम 

100-400 मी. टन युरिया के बराबर

गेंहू 

15 प्रतिशत 

एक मी. टन एजोटोबैक्टर

100 मी. टन यूरिया के बराबर 

कपास   

10 प्रतिशत  

एक मी. टन एजोस्पिरिलियम

40-80 मी. टन यूरिया के बराबर 

सोयाबीन 

 35 प्रतिशत 

एक मी. टन पी.एस. एम

102 मी. टन डी..पी. के बराबर

दलहन 

10-20 प्रतिशत

एक मी. टन एसीटोबैक्टर

400-600 मी. टन यूरिया के बराबर 



जैव उर्वरक उपयोग करने की विधियां 

जैव उर्वरकों को मुख्यतः तीन विधियों से दिया जाता है।

अ. बीजोपचार द्वारा - इस विधि में सबसे पहले 25 ग्राम गुड़ को आधा लीटर पानी में घोल लेते है। इस घोल को 25 मिनट तक उबालकर ठंडा कर ले । जीवाणु उर्वरक के एक पैकेट 200 ग्राम को ठंडे किये गये गुड़ के घोल में अच्छी तरह मिला लें, उसके तुरंत बाद बीज की बुवाई करें।

200 ग्राम जैव उर्वरक को आधा लीटर (500 मि.ली.) पानी में अच्छी तरह घोलकर बीजों पर लेप कर छाया में सुखायें तथा उसमें तुरंत बाद बीज की बुवाई करें ।

नोट - स्फुर घोलक जीवाणु तथा नत्रजन स्थिरीकरण वाले जीवाणु का बराबर मात्रा (5-5 ग्राम प्रति किलो बीज) का प्रयोग करे ।


ब. मृदा उपचार - मृदा उपचार के लिये जैव उर्वरक की 2-3 कि.ग्रा. मात्रा 50 किलो छने हुए कम्पोस्ट या भुरभुरी मिट्टी में मिलाकर बुवाई के समय या 24 घंटे पूर्व एक एकड़ में भुरके।


स. पौध जड़ उपचार - पौध जड़ उपचार उन फसलों के लिये उपयुक्त है जहां पौधों को रोपा जाता है। यह  उपचार दो अवस्थाओं में किया जा सकता है।

1. नसर्री लगाते समय बीज को पानी से हल्का नम करें उसमें एक पैकेट कल्चर डालकर एवं अच्छी तरह मिलाकर बुवाई कर दें।

2. रोपा लगाते समय 4 पैकेट कल्चर लगभग 15 लीटर पानी में घोल बनाकर पौघों की जड़ों को इस घोल में 20 - 30 मिनट तक डुबोने के बाद रोपाई करना चाहिए।

नील हरि शैवाल 10 किलो/हैक्टेयर की दर से धान की रोपाई के एक सप्ताह बाद छिड़काव करना चाहिए।

खड़ी फसल में जैव उर्वरक देने की विधि 

खड़ी फसल में जैव उर्वरक उपयोग करने के लिये पहले मिश्रण तैयार करें।

मिश्रण बनाने की विधि निम्नानुसार:

जैविक/जैव उर्वरक (प्रति हैक्टर के लिए)

गोबर खाद 50 किलोग्राम

राइजोबियम कल्चर 1.5 किलोग्राम

एजोटोबेक्टर 0.5 किलोग्राम

पी.एस.बी. कल्चर 3.0 किलोग्राम

जैविक उर्वरक उपयोग करते समय ध्यान देने योग्य बातें 

1. शुष्क एवं अति शुष्क क्षेत्रों में अधिक तापमान की स्थिति में जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में खड़ी फसल में उपयोग करना अधिक लाभदायक है।

2. कई बीजों के सुरक्षा हेतु बीज का कवच फिनोल का रहता है जो कि जीवाणुओ  की सक्रियता को प्रभावित करता है। ऐसी स्थिति में जीवाणु खाद खड़ी फसल में उपयोग करना चाहिए।

3. बीजों को रोगों से बचाव के लिये फफूंदीनाशक दवा से उपचारित किया जाता है। अतः उपचारित बीज के साथ जीवाणु खाद की सक्रियता नष्ट हो जाती है। अतः खड़ी फसल में जीवाणु खाद उपयोग करने से सक्रियता एवं उपयोगिता बढ़ती है।

4. पतले छिलके वाले बीज जैसे - मूंगफली इत्यादि को जीवाणु खाद से उपचारित करने से उनका छिलका उतर जाता है। जिससे अंकुरण क्षमता प्रभावित होती है। ऐसी स्थिति में खड़ी फसल में जीवाणु खाद उपयोग करना लाभप्रद है।

5. राइजोबियम कल्चर के पैकेट पर लिखी हुई फसल के लिये ही इस्तेमाल करें।

6. कल्चर को आग और धूप से दूर रखें।

7. कल्चर के पैकेट पर लिखी अंतिम तारिख से पहले उपयोग कर लें।

8. कल्चर को उपयोग से पहले किसी ठंडे या छायादार स्थान पर रखें परंतु रेफ्रीजरेटर में रखने की आवश्यकता नहीं है। इसे कमरे के तापमान पर गर्मी और सर्दी दोनों प्रकार के मौसम में 6 माह तक रखा जा सकता है।

9. पैकेट को उस समय खोले, जब उपयोग करना हो और इतना ही बीज उपचारित करें जितना एक बार में बोया जा सकें। उपचारित बीज को जल्द से जल्द बोने का प्रयास करें।

10. पी.एस.बी. तथा राइजोबियम/एजोटोबैैक्टर/ एजोस्पिरिलियम का दोनों का बराबर मात्रा में एक साथ प्रयोग करें।





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