वर्मी कम्पोस्ट एक लाभदायक खाद (Vermicompost: a beneficial manure)
डाॅ. विरेन्द्र कुमार पैंकरा एवं डाॅ. युवराज सिंह ध्रुव
केचुओं का वैज्ञानिक ढंग से नियन्त्रित दशाओं में पालन (संवर्धन) एवं प्रजनन वर्मीकल्चर कहलाता है तथा केचुओं द्वारा बेकार कार्र्बिनक पदार्थो (गोबर, सड़ी-गड़ी फल सब्जियां पत्तियां, पुआल, घास फूस व खरपतवार आदि) को खाकर जो विसर्जित पदार्थ निकाला जाता है उसे वर्मीकम्पोस्ट कहते हैं। वर्मीकम्पोस्ट में किसी भी अन्य कम्पोस्ट की अपेक्षा निम्न विशेषताएं पाई जाती है -
- वर्मीकम्पोस्ट में गोबर की खाद की अपेक्षा कई गुना पोषक तत्व पाये जाते हैं।
- दानेदार हाने के कारण वर्मीकम्पोस्ट भूिम वायु संचार एवं जलधारण क्षमता को सुधारता है।
- इसमें पौधों के लिए लाभकारी सूक्ष्मजीव अत्यधिक हातेे है, जैसे - नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरिया, फास्फेट सोल्युबिलाइजिंग बैक्टीरिया, फंजाई एक्टीनोमाइसीन, पौधों की वृिद्ध को प्रोत्साहित करने वाले बैक्टीरिया तथा बहुत से अन्य महत्वपूर्ण सूक्ष्मजीव ।
- वर्मी कम्पोस्ट मे आग्जीन्स, जिबे्रलिन्स, साइटोकाइनिन्स, विटामिन्स एवं एमीनो एसिड्स पाये जाते है जिनमें पौधों की वृद्धि, विकास, प्रजनन एवं उपज को प्रभावित करने की क्षमता होती है।
- वर्मी कम्पोस्ट से भूिम की भाैितक दशा सुधरती है।
- इससे भूिम मे जीवांश दर बढती है।
- इसके लगातार प्रयोग से फसलों को पानी की कम आवश्यकता होती है।
- वर्मी कम्पोस्ट में मनुष्यों एवं पौधों को हानि पहुंचाने वाले पैथोजन्स की संख्या कम होती है
- तैयार कम्पोस्ट पूर्णरूप से दुर्गन्ध रहित होती है।
- पोषक तत्व अधिक होने के कारण किसी भी फसल में कम प्रयोग होती है। जिससे समय व धन दोनोें की बचत होती है।
- किसी भी कम्पोस्ट की अपेक्षा तैयार होने में कम समय लेती है।
- अच्छी तरह तैयार होने के कारण खेत में प्रयोग करने पर फसल में दीमक लगने का खतरा नहीं रहता।
- भूमि के स्वास्थ्य को सही रखती है।
- वर्मी कम्पोस्ट द्वारा तैयार फसल उत्पाद को बाजार मे सामान्य दर से 2-3 गुनी दर पर बेचा जा सकता है।
आर्गेनिक कार्बन
|
9.15-17.98 प्रतिशत |
कुल नाइट्रोजन |
0.5-1.5 प्रतिशत |
फॉस्फोरस |
1-0-0.3 प्रतिशत |
पोटैसियम |
0.15-0.56 प्रतिशत |
सोडियम |
0.06-0.3 प्रतिशत |
कैल्शियम व मैग्नीशियम |
22.67-7.0 मिली0 |
इक्यूवैलेन्ट |
100 ग्राम |
काॅपर |
2-9.5 पी0पी0एम0 |
आयरन |
2-9.5 पी0पी0एम0 |
जिंक |
5.7-11.5 पी0पी0एम0 |
सल्फर |
128.0-548.0 पी0पी0एम0 |
नोट: उपरोक्त तत्वों की मात्रा प्रयुक्त कच्चे माल के अनुसार घट-बढ़ सकती है।
वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन विधि:
केचुंओं का चयन भूिम में तीन प्रकार के केचुएं पाये जाते है
- ऊपरी सतह के (एपीजेइक)
- मध्यम सतह के (एनीसिक)
- गहरी सतह के (इन्डोजेइक)
इनमें ऊपरी सतह वाले केचुएं कम्पोस्ट बनाने हेतु प्रयुक्त होते है, क्योकि इनमें किसी भी कार्बनिक पदार्थ को खाकर कम्पोस्ट बनाने की क्षमता होती है एपीजइेक केचुआंे में भी हमारे देश में मुख्य रूप से एसीनिया फेटिडा व यूड्रिलस यूजैनी प्रयोग किये जा रहे है इनमें एसीनिया फेटिडा प्रजाति पूरे देश के लिए तथा युडीलस यूजैनी केवल दक्षिण भारत के लिए उपयुक्त है।
वर्मी कम्पोस्ट बनाने की विधि:
- खाद बनाने हेतु सर्वप्रथम भूमि की सतह पर टूटी हुई या पूरी ईटों को तीन चार फीट चाडैाई एवं 15 फीट लम्बाई में बिछाये।
- ईटों के बिछाने के उपरान्त उनमें 8ः1 का रेत व सीमेंट का घाले डालें।
- तदोउपरांत सूखी घास-फूस व पत्तियों पुआल की 3-4 इंच की परत लगायें।
- इसके बाद वर्मी कम्पोस्ट या गोबर की खाद की 6-7 इंच मोटी परत बिछायें।
- तदो्उपरांत उसमें 8-10 किग्रा केचुंए प्रति क्यारी (बैड) डालें।
- केंचुए डालने के उपरान्त घास-फूस मिले कच्चे गोबर को 8-10 इंच मोटी परत बिछायें ध्यान रहे कि प्रयुक्त किया
- जाने वाला गोबर 15-20 दिन पुराना हो जिसे प्रयोग करने से पूर्व पानी डालकर ठंडा कर लें।
- परत बिछाने के बाद उसको पानी से अच्छी तरह तर कर दें तथा फिर 20-25 दिन तक लगातार पानी का छिड़काव करते रहें।
- 25 दिन उपरान्त प्रति सप्ताह दो बार लगभग 5-7 ईंच कचरे व गोबर की परत बिछाते रहें यह प्रक्रिया ढाई फीट ऊंचा होनेे तक जारी रखें तथा गर्मियों में प्रतिदिन व सर्दियों में तीसरे दिन पानी का छिड़काव करते रहें । ध्यान रहे कि बैड़ पर सदैव 40-50 प्रतिशत नमी बनी रहनी चाहिए।
- गोबर की सतह को हर सप्ताह गाॅर्डन रेक आदि की सहायता से पलटते रहें जिससे वायु संचार पर्याप्त रूप से होता रहे।
- कम्पोस्ट बनाने हेतु किसी छायादार स्थान या छप्पर आदि का चुनाव ही करें जिससे तेज धूप व वर्षा के पानी से बचाव हो सके।
- फिर कम्पोस्ट को निकाल कर किसी छायादार जगह पर ढेर लगा दें तथा हल्का सूखने के बाद 2-3 दिन तक पानी का छिडकाव बंद कर दे तैयार कम्पोस्ट काले रंग की व भुरभुरी हो जाती है।
- फिर कम्पोस्ट को निकाल कर किसी छायादार जगह पर ढेर लगा दे तथा हल्का सू£ने के बाद 2-3 मिमी0 वाली लोहे की जाली से बने झरने की मदद से उसे छान लें इस खाद में 20-25 प्रतिशत नमी होनी चाहिए। छनी हुई खाद को यदि बचे ना हो तो पोलिथीन की थैलों में भर लें और यदि खेत में प्रयोग करना हो तो वहां प्रयोग कर सकते है और यदि कुछ समय के लिए रखना हो तब भी छायादार स्थान पर ही रखें।
- उपज: उचित देखरेख में प्रयुक्त कार्र्बिनक पदार्थ के भार का 60-65 प्रतिशत वर्मीकम्पोस्ट प्राप्त हो जाता है।
- खाद्यान्न फसलों में वर्मी कम्पोस्ट 4-5 कुन्टल प्रति बीघा (6-7 टन प्रति है ) प्रयोग करें।
- फलदार पेडों में आयु अनुसार 2-40 किग्रा0 प्रति पेड़ वर्मी कम्पोस्ट दें।
- सब्जी की फसलों में 6-8 कुन्टल प्रति बीघा (8-10 टन प्रति है0) प्रयोग करें।
- गमलों में 200-250 ग्राम प्रति गमला (8 ईच ) प्रयागे करें।
- वर्षा के पानी व धूप से सदैव बचाकर रखें।
- सदैव 40-50 प्रतिशत नमी व 20-30 सेंटीग्रेट तापमान बनाये रखें।
- गोबर व अन्य कार्बनिक पदार्थो को कभी भी दबाकर न डालें।
- कभी भी ताजा गोबर व ताजे वानस्पतिक पदार्थ न डालें बल्कि अधसड़े होनेे पर ही उनका प्रयागे करें।
- पर्याप्त वायु संचार रखने के लिए गार्डन रैक से कार्र्बिनक पदार्थो को ढीला करते रहें।
- यदि दीमक की समस्या है तो ईंटे बिछाने से पूर्व ही क्लोरोपाइरीफॅास 20 ई.सी. या इण्डो सल्फान 20 ई.सी. द्वारा भूमि उपचारित कर लें और यदि कार्बनिक पदार्थो में दीमक लग जाये तो नीम खली व नीम पत्तियों का प्रयोग करें।
केचुओं से सम्बन्धी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी:
- ऐसीनियाफेटिडा तीन से छः माह में 40-90 गुना बढने की क्षमता रखता है।
- केचुंएकार्बनिक पदार्थो से ज्यादा पशुओं के गोबर को पसंद करते है ।
- केचुंए 20-400 से ग्रे‐ तापमान को अधिक पसंद करते है।
- वर्मी बैड पर पुआल या घास-फूस की मल्चिंग करने से केचुंएगर्मी व ठंड से बचे रहते है ।
- एक किलोग्राम में लगभग 1000 केचुंए आ जाते है ।
- जिंदा केचुंए का भार 1000 से 1500 मिलीग्राम तक होता है।
- इनका जीवन चक्र 150-180 दिन का होता है।
- धान/गेेहू / चना की भूसी प्रयागे करने से केचुओं की वृद्धि दर तेजी से बढ़ जाती है।
- एक केचुंए के अण्डे से 3-5 तक छेाटेे बच्चे निकलते है ।
- केचुंए अंधेरे को पसंद करतेहै ।
- एक केंचुआ प्रतिदिन लगभग 1.5 से 6 ग्राम तक कचरा खाता है।
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धन्यवाद्
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